Saturday, December 26, 2015

ऑड-इवन फार्मूला से लटकी दिल्ली में शादियाँ

सुभाष  नगर, दिल्ली।  एक मकान से एक जनाना आवाज़  में मरजाणी – दिलजले -दिलवाले (शाहरुख़ वाली) आदि आदि विशेषण सुन correspondent को ऐसा लगा कि दिल्ली की जनता अपने मुख्यमंत्री को काफ़ी गंभीरता  से लेती है। हम बाहरियों की सोच भले कैसी भी रहे।

सम-विषम गाड़ी रजिस्ट्रेशन की कवरेज के लिए correspondent @khakshar को आपके विशिष्ट पत्रिका ने दिल्ली भेजा हैं। एक तो दिल्ली की ठण्ड , ऊपर  से संसद समाप्त और मोदी जी के अनुपस्तिथि के कारण गायब होती रही सही गर्मी में reporting कष्टदायक  हैं। इतनी कपकपाने  वाली ठण्ड है की आज तो राहुल गाँधी के “न  खाऊँगा, ना  खाने  दुँगा” वाला आरोप  गरमाहट से विहीन था।

सम घोड़ी का विषम दिन पर चलने से इंकार

शत्रु बाबु भी आज़ाद की ठण्डी होती तबियत देख पटना खिसक लिए हैं, बिहार  चुनाव  की पुरानी गरमाहट का अलाव  तापने  के लिए। आज़ाद भाई की मज़बूरी हैं। उनके निर्वाचन क्षेत्र में गजब की शीत लहरी हैं। आज तक अपने पिछड़े निर्वाचन क्षेत्र के बारे में संसद में एक सवाल नहीं पूछने वाले साहेब DDCA का घुरा (अलाव) ताप रहे हैँ वर्षों से।

भाषा नियंत्रण तो आजकल अप्रचलित (out of फैशन) हो रहा हैं। सम-विषम काफी प्रचलित हो गया हैं। वो भाषा श्रीमती तोमर की थी जो की कैटरर, डीजे तथा गाड़ी प्रबंधक पर अपनी भड़ास निकाल रही थी। आखिर लड़के की शादी हैं १५ जनवरी को और सब अब 20 परसेंट ज्यादा माँग रहे हैं। घोड़ी वाला भी पैसे बढ़ाने के लिए बोल रहा था इवन-ओड की समझा कर।

इधर द्धारका में एक शादी की तारीख पर लड़के के फुफा जी और लड़के के बहनोई में ठन गयी हैं। फुफा जी की SUV गाडी का नंबर even है तो बहनोई की गाडी का नंबर odd है। वर जिसकी शादी दो बार तारीख निकलने के बाद बाधित हो चुकी हैं, सन्नी देव (भगवन नहीं, तारिख पे तारिख वाले) की तारिख पे तारीख वाली साढ़े-साती प्रकोप हटाने के लिए उनके परिवार वालों के सारी फिल्में देख रहा हैं। कहीं धर्म के प्रकोप से ‘कुत्ते-कमी…” वाली चालीसा (मुख्यामंत्री की प्रिय) काम आ जाए।

मुहुर्त लिकाने वाले पण्डित जी, “आचार्य लग्न – चतुर्वेदी” आजकल चाँदी काट रहे हैं। दिल्ली सरकार जो की ऐप्प पर ही गली-मोहल्ले की कूड़ा-कचरा साफ कर देती हैं, लग्न-महुर्त के लिए भी एप्प बना रही हैं। विषिश्ट बरातियों और अतिथियों के गाड़ी रजिस्ट्रेशन नंबर फीड करके मुहुर्त की तारीख निकल जाएगी।

इधर नई सड़क के बगल में चाय पीते एक शायर फर्मा रहे थे —

नब्ज-ए-दिल्ली तो समझिए जनाब
बड़प्पन चलाता हैं इसे न की रुआब

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