Friday, December 18, 2015

बिहार में फैला विदेशी भाषा का उपयोग

संगति का असर बिहार सरकार में दो -तरफा दिखने लगा है। बहुचर्चित कानून- व्यवस्था पर संगत के असर का खबर या टिप्पणी तो आपको मुख्यः समाचार वाले देते रहेंगे। हमारे विशिष्ट पत्रिका ने जब विश्लेषण किया तो पाया की एक और संगति का असर बिहार सरकार के क्रिया-कलापो पे छाप छोड़ रहा हैं। इसी अल्प-चर्चित असर के कारण बिहार -सरकार मद्य निषेध पर एक “यु -टर्न” ले चुकी हैं।

मुख्यमंत्री पूछते हुए--यु-टर्न वाली चित्र को किसी ने हटा दिया हैं क्या?

मुख्यमंत्री पूछते हुए–यु-टर्न वाली चित्र को किसी ने हटा दिया हैं क्या?

देसी शराब पर बैन की बात तो सरकार कह रही है, लेकिन विदेशी शराब अब खुद बेचेगी। बिहार स्टेट बेवरेज कॉरपोरेशन (बीएसबीसीएल) रिटेल में विदेशी शराब बेचने की योजना बना रहा है। होलसेल थोक बिक्री में एमआरपी पर 2 पर्सेंट मुनाफा होता है। जबकि रिटेल में मुनाफा 25 पर्सेंट है। बिहार सरकार जैसी कुबेरी -सरकार आखिर चार – हज़ार करोड़ का कर ऐसे ही थोड़े जाने देगी।

मतदान सम्बन्धी डेटा इधर-उधर कर्ता (psephologist) ये कितनी बार बता चुके हैं की महिला वोट के कारण ही महागठबंधन की सरकार सत्ता में आई। जानकार ये भी मानते है की मद्य निषेध का वादा, महिला वोटरों को रिझाने में सफल रहा। वैसे कुछ महिला इस फैसले से खुश दिखी। “फुलवरीवा देवी” एक मध्यम परिवार की महिला इस बात से काफी खुश दिखी। बोली भला हो सुशासन का कि घर का बजट कम हो जाएगा। बताया की पति रोज़ ही पीते हैं औरअब बच्चों की अँग्रेज़ी टूशन वाले शिक्षक की ज़रुरत नहीं पड़ेंगी। पति शाम में फर्राटेदार पढ़ा देंगे। उधर बहुत दिन प्रवास के बाद विदेश से लौटा फुद्दन मास्साब का लड़का काफी प्रभवित दिखा, बोला शिक्षा में तो अच्छा विकास दिखता हैं, शाम में ज्यादातर लोग विदेशी भाषा ही बोल रहे हैं।

इस बैन से आदत छूटे न छूटे अब तो जेब और हल्का होकर घर पहुँचने लगा हैं। खेतिहर भी परेशान है, राशन में चावल, गेंहु तो मिल जाता हैं, खेत में काम करने वाले अब मज़दूरी का एक हिस्सा मुर्गा और विदेशी में मांगने लगे है। इधर बिहार में प्रायोजित सम्मेलनों में फोकटिया विदेशी डकारने वाले बहुसंख्यक बिहारी पत्रकार चुप हैं। मद-निषेध को path -breaking बताने वाले ये जंतु आज -कल जान- बुझ DDCA के चोंचलों में फँसे हैं।

पटना की गलियों में एक गाना आजकल बहुत प्रचलित हो गया हैं..

देसी मुर्गी अब चले हैं विदेशी चाल, सुशासन में नहीं गलेगी अपनी दाल.. (२)

परदेसी होवे ही में हैं अपन भलाई, नहीं तो बिन पिए भी लड़ेंगी लुगाई

चला लल्लनवा करने कुछ कमाई, बहार कहाँ ये तो हैं आँधी आई

देसी मुर्गी अब चले हैं विदेशी चाल, सुशासन में नहीं गलेगी अपनी दाल..

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