Sunday, February 28, 2016

रायबरेली मदरसे का नया फ़तवा, बकरी पालने को बताया ‘ग़ैर-इस्लामिक’

रायबरेली. शहर के मशहूर मदरसे दरगाह आला हज़रत ने बकरी के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी करते हुए इसे ‘ग़ैर-इस्लामिक’ बताया है। फ़तवे में कहा गया है कि “बकरी की आकृति गाय से मिलती जुलती है, इसलिये बकरी पालना हराम है।” इससे पहले बरेली के मदरसे ने टाई बांधने के ख़िलाफ़ ऐसा ही फ़तवा दिया था।

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फ़तवे को सुनकर सुबकती एक युवा बकरी अपनी मां के साथ

असल में, मौलाना शमशाद शहाबुद्दीन नाम के एक व्यक्ति ने बकरी से जुड़ा एक सवाल पूछा था। जिस पर मुफ़्ती आलम हिंद सैयद मियां ख़लील राशिद ने फ़तवा जारी करते हुए कहा कि “बकरी के चार पैर होते हैं और गाय के भी चार पैर हैं। बकरी भी एक पूंछ रखती है और गाय भी एक पूंछ की स्वामिनी है।”

दोनों में समानताएं गिनाते हुए मुफ़्ती ने आगे कहा कि “बकरी का दूध भी सफ़ेद होता है और गाय का भी। और सबसे बड़ी बात, दोनों हरा चारा खाती हैं और पानी पीती हैं। इस कैलकुलेशन के हिसाब से बकरी और गाय का आपस में कनेक्शन है और उसकी हिंदुओं से रिश्तेदारी है क्योंकि गाय को हिंदू मां समान मानते हैं। ”

मुस्लिमों को बकरी ना पालने की हिदायत देते हुए उन्होंने कहा कि “और हिंदू लोग गाय को पूजते हैं और जिस भी चीज़ को हिंदू पूजते हैं, वो मुसलमानों के लिये ऑटोमेटिकली हराम हो जाती है। इसलिये मुसलमानों को बकरी जैसी ग़ैर-मुस्लिम चीजों से बचना चाहिये।”

इस फ़तवे के जारी होते ही दुनिया भर के मुसलमान मुश्किल में पड़ गये हैं क्योंकि कश्मीर से लेकर साइबेरिया तक मुसलमान सबसे ज़्यादा बकरी ही पालते हैं। कुछ मुसलमानों ने तो अपनी बकरियों को घरों से निकालना भी शुरु कर दिया है और जिन हिंदुओं ने अपनी बूढ़ी गायों को घरों से निकाल दिया था, उनमें इन बकरियों को झपटने की होड़ मच गयी है।

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