Sunday, February 28, 2016

जेल से छूटने के बाद संजय दत्त का पहला एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

मुंबई. बाबा सहगल के बाद बॉलीवुड में बचे एकमात्र बाबा यानि अपने संजू बाबा जेल से बाहर आ गये हैं। हमारे संवाददाता ने उन्हें हाथ-मुंह भी नहीं धोने दिया और घर पहुंचते ही उनके मुंह के सामने माइक लगा दिया। इस दौरान उनके क़रीबी दोस्त अरशद वारसी यानि सर्किट भी मौजूद थे। पढ़िये पूरा ‘अति-एक्सक्लूसिव’ इंटरव्यूः-

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गोवा गुटखा खाते और सवाल को ध्यान से सुनते संजू बाबा

रिपोर्टरः बधाई हो संजू बाबा! जेल से बाहर आकर कैसा लग रहा है?

संजूः सच्ची बोलूं तो मेरे को कभी लगा ही नहीं कि मैं जेल में हूं। क्यूं सर्किट!

सर्किटः हां भाई! आप हर दूसरे दिन तो इधर ही होते थे। (दोनों हंसते हैं)

रिपोर्टरः आपने जेल में 38 हज़ार रुपये कमाये थे, जिनमें से आप सिर्फ़ 440 बचाकर लाये हैं। बाक़ी के 37,560 किधर गये? क्या जेल में बीड़ी-गुटखे पर फूंक दिये?

सर्किटः भाई गोवा गुटखा के ब्रांड एंबेसेडर हैं ना! तो ये सब तो उधर फ्री में मिल जाता था। है के नहीं भाई!

संजूः अच्छा याद दिलाया रे सर्किट! चल निकाल एक गोवा। (दोनों खाते हैं)

रिपोर्टरः आपने कभी जेल में सुरंग खोदने की कोशिश की थी क्या?

संजूः कई बार की थी। लेकिन जब भी मैं सुरंग खोदना शुरु करता था, तभी वे मेरे को पैरोल पे भेज देते थे। हैं ना सर्किट!

सर्किटः भाई ‘एग रोल’ मांगते थे और वो भाई को ‘पैरोल’ दे देते थे। (दोनों ठहाका मारकर हंसते हैं)

रिपोर्टरः क्या आप भी जेल में 15 अगस्त और 26 जनवरी को ‘दिल दिया है जान भी देंगे ऐ वतन तेरे लिये’ गाते थे?

संजूः नहीं रे! उधर पहुंचते ही मैंने अपना नया वाला सॉन्ग चालू कर दिया था- “सुबह हो गयी मामू…!” (दोनों ज़ोर-ज़ोर से गाने लगते हैं)

रिपोर्टरः आपको जेल में प्रतिदिन कितने रुपये मिलते थे?

संजूः प्रतिदिन बोले तो?

सर्किटः भाई, प्रतिदिन बोले तो डेली…डेली!

संजूः कितना टफ़ वर्ड है साला…’प्रतिदिन’! बोलते-बोलते दिमाग में केमिकल लोचा हो जाता है। हां तो, वो मेरे को डेली 50 रुपये देते थे।

रिपोर्टरः सिर्फ़ 50 रुपये?

संजूः मैं उधर वो था ना…सेमी-स्किल्ड वर्कर। ऐ सर्किट, हिंदी में क्या बोलते हैं रे उसको?

सर्किटः अर्ध-कुशल श्रमिक भाई!

संजूः ये बी साला कितना टफ वर्ड है- अर्दा-कुसल सिरमिक!

सर्किटः अगर मोदी का ‘स्किल इंडिया’ प्रोग्राम पहले चालू हो गया होता ना, तो भाई की कमाई एकदम डबल होती।

रिपोर्टरः उन्होंने आपसे जेल में लिफ़ाफ़े ही क्यूं बनवाये? पत्थर क्यूं नहीं तुड़वाये?, जबकि आपने अपनी आधी फ़िल्मों में जेल में पत्थर ही तोड़े हैं।

संजूः वो मैंने जेलर को अपनी गांधीगीरी दिखा दी थी ना! तेरे को भी दिखाऊं क्या?

रिपोर्टरः नहीं नहीं!

संजूः तो अगला सवाल पूछ ना!

रिपोर्टरः उन्होंने आपको साढ़े आठ महीने पहले ही क्यूं छोड़ दिया? क्या आपके बनाये हुए लिफ़ाफ़े जल्दी फट जाते थे?

सर्किटः लिफाफे तो एकदम मस्त बनाते थे भाई। मेरे को भी भेजे था…है ना भाई!

संजूः उन लोगों ने मेरे को अच्छे बिहेव…हिंदी में क्या बोलते हैं उसको सर्किट?

सर्किटः अच्छा चाल-चलन भाई!

संजूः हां, उसी की वजह से जल्दी छोड़ दिया।

रिपोर्टरः अच्छा चाल-चलन! वो कैसे?

संजूः ऐसे!   (दोनों चलकर दिखाते हैं और हंसते हैं)

सर्किटः अब तू भी ऐसा ही चाल-चलन दिखा के कल्टी हो जा चल! अभी भाई को ‘इनटॉलरेंस’ पे भी इंटरव्यू देना है।

संजूः ये ‘इनटॉलरेंस’ को हिंदी में क्या बोलते हैं रे सर्किट?

सर्किटः इनटॉलरेंस बोले तो भाई…असहिष्णुता!

संजूः कितना टफ़ वर्ड है…’ऐसेहीसुनता’! मेरा तो माथा घूम रहा है सर्किट। इसको इदर से जाने को बोल…नहीं तो मैं इसको इदर के इदर अभी इनटॉलरेंस…बोले तो ऐसेहीसुनता दिखा दूंगा!

(असहिष्णुता का माहौल बनता देख हमारा रिपोर्टर बाक़ी बचे सवालों की पर्ची जेब में घुसेड़ता है और चुपचाप वहां से खिसक लेता है)

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